उपन्यास : प्रथम किश्त
विशु
- पंकज अवधिया
‘उसने ज्योतिषियो से मदद मांगी तो रत्न सुझा दिये गये। हजारो बहाये गये पर नतीजा सिफर ही रहा। फिर किसी ने सिद्ध बाबा से मिलने की बात कही। विशु ने अपनी माँ को जब उनसे मिलवाया तो बिना कुछ जाने वे बोल पडे ‘यह रोग तो किसी दुखी मन से निकली आह के कारण ही हो सकता है। क्या तूने किसी का दिल दुखाया है?’ अनोखी ने कहा ‘नही तो।‘ तो बाबा बस मुस्कुरा दिये।‘
इसी उपन्यास से
पूरा यहाँ पर पढे
4 comments:
अरे वाह-पढ़ते हैं जरुर समय निकाल कर. सरसरी तौर पर देख ली है पहली किश्त.
जरूर पढ़ॆंगे जी. आप तो ऎसे ही बताते रहें हमें.हमारे ब्लॉग पर आते भी रहिये. :-)
लिखते रहें धन्यवाद.
http://kakesh.com
बहुत सुन्दर। "मेरी प्रतिक्रिया" का फीड सब्स्राइब कर लिया है और वह सतत पढ़ा जायेगा।
यह कथा प्ररम्भ में ही मानवीय स्वार्थ और पुरानी पीढ़ी के प्रति व्याप्त घोर उपेक्षा के दर्शन करा रही है। वह सच्चाई भी है और समस्या भी।
शुक्रिया!!
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