मालिश वाली The Massage Girl
(पंकज अवधिया के अंग्रेज़ी उपन्यास "द मसाज गर्ल" के कुछ अनुवादित अंश)
"आपने अभी तक कपडे उतारे नही| चलिए मै आपकी मदद करती हूँ|"
कपड़े तो उतरे हुए थे| पूरे नही पर जिस भाग में दर्द था और जहां मालिश करानी थी वहां के कपड़े तो उतारे जा चुके थे| फिर किस कपड़े की बात हो रही है?
"इतनी भी क्या बेसब्री है? तनिक रुकिए|" मैंने टालने की कोशिश की|
पर लगता था कि उसका रुकने का मन नही था|
एक दिन कितना बड़ा होता है मुझे आज इसका आभास हुआ| अलसुबह ही मुम्बई पहुंचा और एयर पोर्ट से उठा लिया गया| अचानक ही अपने को मुबई-पुणे मार्ग की पहाड़ियों पर पाया| मालिश के लिए नही आया था मै| बात गम्भीर थी| एक प्रसिद्ध सिने अभिनेता के पिता गंभीर रूप से बीमार थे| डाक्टरों ने जवाब दे दिया था और हाथ भी खड़े कर दिए थे| प्रोस्टेट कैंसर के शिकार थे वे| नाना प्रकार की दवाएं अब भी चल रही थी| देश-विदेश से जानकारों को बुला लिया गया था इस उम्मीद में कि शायद वे कुछ चमत्कार कर सके| मुझे भी अपने शहर से उठा लिया गया था| मैं लाख ना नुकुर करता रहा पर छोटा विशेष विमान आ जाने पर ना न कर सका| मैंने पुणे के पास करजत की पहाड़ियों में जाना तय किया ताकि मैं रोगी की जीवनी शक्ति जानने के लिए कुछ प्रयोग कर सकूं जिनके आधार पर उचित जड़ी-बूटियों का सुझाव दे सकूं| प्राइवेट जेट की सुखद उड़ान के बाद पहाड़ियां कष्ट दे रही थी| फिर भी दो घंटे की चढाई के बाद जड़ी-बूटियों की खोज शुरू हो गयी|
शाम को जब थककर चूर हो गए तो वापस लौट आये| रोगी से दूसरे दिन सुबह मिलना था| थकान इतनी थी कि बिस्तर पर पड़ते ही नींद आ जाती| स्वभाव में कुछ चिडचिडाहट आ रही थी यानी शरीर अब आराम की जिद कर रहा था| सिने अभिनेता के सहयोगी मेरी दशा को ताड़ गए और तुरंत होटल की ओर रवाना कर दिया| होटल की शान देखते ही बनती थी| मुझे समुद्र की ओर वाला कमरा दिया गया ताकि मैं सुकून पा सकूं| अच्छी खातिरदारी की गयी| मैंने स्नान किया और फिर घर पर फोन से बात करने लगा|
तभी कंधे पर कुछ गुदगुदी हुयी| कमरे में तो मैं अकेला था| कीड़ों की उम्मीद मैं नहीं कर सकता था, घने जंगल में किसी सरकारी रेस्ट हाउस में जो मैं नही था| आलीशान होटल था जहां ग्राहकों के आने से पहले उनको बिना बताये जहरीले कीटनाशकों का छिडकाव किया जाता है ताकि कीड़ों का नामोनिशान न रहे| खटमल हो भी तो कोने में दुबके बैठे रहे कम से कम ग्राहकों के सोते तक| फिर यह गुदगुदी कैसी? (क्रमश:)
कपड़े तो उतरे हुए थे| पूरे नही पर जिस भाग में दर्द था और जहां मालिश करानी थी वहां के कपड़े तो उतारे जा चुके थे| फिर किस कपड़े की बात हो रही है?
"इतनी भी क्या बेसब्री है? तनिक रुकिए|" मैंने टालने की कोशिश की|
पर लगता था कि उसका रुकने का मन नही था|
एक दिन कितना बड़ा होता है मुझे आज इसका आभास हुआ| अलसुबह ही मुम्बई पहुंचा और एयर पोर्ट से उठा लिया गया| अचानक ही अपने को मुबई-पुणे मार्ग की पहाड़ियों पर पाया| मालिश के लिए नही आया था मै| बात गम्भीर थी| एक प्रसिद्ध सिने अभिनेता के पिता गंभीर रूप से बीमार थे| डाक्टरों ने जवाब दे दिया था और हाथ भी खड़े कर दिए थे| प्रोस्टेट कैंसर के शिकार थे वे| नाना प्रकार की दवाएं अब भी चल रही थी| देश-विदेश से जानकारों को बुला लिया गया था इस उम्मीद में कि शायद वे कुछ चमत्कार कर सके| मुझे भी अपने शहर से उठा लिया गया था| मैं लाख ना नुकुर करता रहा पर छोटा विशेष विमान आ जाने पर ना न कर सका| मैंने पुणे के पास करजत की पहाड़ियों में जाना तय किया ताकि मैं रोगी की जीवनी शक्ति जानने के लिए कुछ प्रयोग कर सकूं जिनके आधार पर उचित जड़ी-बूटियों का सुझाव दे सकूं| प्राइवेट जेट की सुखद उड़ान के बाद पहाड़ियां कष्ट दे रही थी| फिर भी दो घंटे की चढाई के बाद जड़ी-बूटियों की खोज शुरू हो गयी|
शाम को जब थककर चूर हो गए तो वापस लौट आये| रोगी से दूसरे दिन सुबह मिलना था| थकान इतनी थी कि बिस्तर पर पड़ते ही नींद आ जाती| स्वभाव में कुछ चिडचिडाहट आ रही थी यानी शरीर अब आराम की जिद कर रहा था| सिने अभिनेता के सहयोगी मेरी दशा को ताड़ गए और तुरंत होटल की ओर रवाना कर दिया| होटल की शान देखते ही बनती थी| मुझे समुद्र की ओर वाला कमरा दिया गया ताकि मैं सुकून पा सकूं| अच्छी खातिरदारी की गयी| मैंने स्नान किया और फिर घर पर फोन से बात करने लगा|
तभी कंधे पर कुछ गुदगुदी हुयी| कमरे में तो मैं अकेला था| कीड़ों की उम्मीद मैं नहीं कर सकता था, घने जंगल में किसी सरकारी रेस्ट हाउस में जो मैं नही था| आलीशान होटल था जहां ग्राहकों के आने से पहले उनको बिना बताये जहरीले कीटनाशकों का छिडकाव किया जाता है ताकि कीड़ों का नामोनिशान न रहे| खटमल हो भी तो कोने में दुबके बैठे रहे कम से कम ग्राहकों के सोते तक| फिर यह गुदगुदी कैसी? (क्रमश:)
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