रेखा कह देती है सब
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अभय से एक अनुरोध
मनुष्य का भविष्य़
बताने वालो
उसे विपत्ति से बचाने के उपाय
सुझाने वालो
जरा इस धरती का भविष्य़
बता दो
निज स्वार्थ मे डूबे मनुष्य के इरादे
जता दो
क्या पहनाऊँ उसे
जो वह न करे बर्बाद इस धरती को
मोती, पन्ना, मूंगा जो भी कहो
पर देखना चाहता हूँ
आबाद इस धरती को
- पंकज अवधिया ‘दर्द हिन्दुस्तानी’
2 comments:
दर्द हिन्दुस्तानी का धरती के प्रति दर्द समझ आता है।
रचना में पूरा दर्द उमाड़ दिया, बहुत खूब.
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