इस बार फिर बोतल से निकलकर
आम लोगो के तन-मन मे घुस जाना
उनसे अपशब्द कहलवाना
शराब इस बार फिर तुम होली मनाना
परेशान है हर शख्स मेरे देश का
मुश्किल है उसके लिये सच कह पाना
पीकर तुम्हे वह सब कुछ है कहता
मिल जाता उसे बहाना
सबकी ही नही अपनी नजरो मे भी उसे गिराना
शराब इस बार फिर तुम होली मनाना
जानते है सब, कैसे करती हो
तुम बर्बाद
हम ही है जिनके बल पर हो
तुम आबाद
मनुष्य़ॉ से सीखे जग, अपने पैरो मे कुल्हाडी चलाना
इस बार फिर बोतल से निकलकर
आम लोगो के तन-मन मे घुस जाना
उनसे अपशब्द कहलवाना
शराब इस बार फिर तुम होली मनाना
पंकज अवधिया ‘दर्द हिन्दुस्तानी’
© सर्वाधिकार सुरक्षित
4 comments:
बढिया है ....! होली की शुभकामनाएं !
alag alag sa andaaz hai kavita ka,likhte rahe
होली के बहाने सन्देश। बहुत अच्छा।
होली मुबारक।
सुन्दर रचना। होली मुबारक।
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