Monday, December 24, 2007

घास पर जमी है ओस

घास पर जमी है ओस

घास पर जमी है ओस

चलो चले उस पर कुछ कोस

जरा नयी पीढी को भी

ले चले साथ

बताये कैसे हम पर है

माँ प्रकृति का हाथ


बटोरे इस स्नेह को

बनके मासूम निर्दोष

घास पर जमी है ओस

चलो चले उस पर कुछ कोस


बच्चे जब होंगे बडे तो ओस

तो होगी

पर तब प्रदूषण बना रहा होगा

सब को रोगी

ओस को भी होगा काँक्रीट जंगल

पर गिरने का तब अफसोस

घास पर जमी है ओस

चलो चले उस पर कुछ कोस


हम ही है जो गँवाते जा रहे है

वो जो हमारे लिये हितकर है

उसे भी जो हमारे साथ रहने वाले

असंख्य जीवो का घर है


आरोग्य छोड जो हम पीडा को चुने

इसमे प्रकृति का क्या दोष

घास पर जमी है ओस

चलो चले उस पर कुछ कोस

पंकज अवधिया दर्द हिन्दुस्तानी

© सर्वाधिकार सुरक्षित

2 comments:

Gyan Dutt Pandey said...

चलिये, घर में लगाई है कुछ घास - उसपर नित्य चलने का यत्न करता हूं। कुछ कोस नहीं तो कुछ मीटर सही!

परमजीत सिहँ बाली said...

पर्यावरण पर बहुत बढिया रचना लिखी है।आज शहरों मे तो यह सच्चाई आम दीख पड़ती है।