Tuesday, October 30, 2007

किसानो के लिये निशुल्क सलाह का नियमित स्तम्भ अब अंतरजाल पर

सूचना

किसानो के लिये निशुल्क सलाह का नियमित स्तम्भ अब अंतरजाल पर

भारतीय किसान विशेषकर औषधीय एवम सगन्ध फसलो की खेती कर रहे किसान अब सीधे ही विशेषज्ञ से जानकारी प्राप्त कर सकते है। न्यूज विंग नामक वेबसाइट पर एक विशेष साप्ताहिक स्तम्भ आरम्भ किया गया है। विस्तार के लिये इस कडी पर जाये।

क्या झारखन्ड के किसान औषधीय फसल भी उगा सकते है?

http://newswing.com/

http://newswing.com/?p=1143

Friday, October 26, 2007

अब भूलकर भी दुश्मन को गुबरैला न कहना

अब भूलकर भी दुश्मन को गुबरैला न कहना

अब भूलकर भी दुश्मन को

गुबरैला न कहना

वो तो खुश होगा और

जलन के दंश तुम्हे होगा सहना


हमारे ही कारण सारे जंगल

लीदो से मुक्त है

देखो जरा अपने आस-पास

सारा आलम मैले से युक्त है


हमने जो छोड दिया है

शहरो मे रहना

अब भूलकर भी दुश्मन को

गुबरैला न कहना

वो तो खुश होगा और

जलन के दंश तुम्हे होगा सहना


अब सारी दुनिया हमारी उपयोगिता

समझ रही है

बिना वेतन, बिना हडताल वाले सफाई कर्मियो की माँग

हर कही है


हम काम करते अनवरत

बारहो महिना

अब भूलकर भी दुश्मन को

गुबरैला न कहना

वो तो खुश होगा और

जलन के दंश तुम्हे होगा सहना


छैल-छबीले

हम गुबरैले रंगीले

हम सा परम संतोषी

खोजने पर भी न मिले


हमसे सीखो जीवन सरिता मे

मस्ती से बहना

अब भूलकर भी दुश्मन को

गुबरैला न कहना

वो तो खुश होगा और

जलन के दंश तुम्हे होगा सहना

गुबरैला को डंग-बीटल्स के नाम से दुनिया जानती है। ये प्रकृति के सफाई कर्मचारी है जिन्हे हमने अपने शहरो से निकाल बाहर किया है। अब हमारे शहर मैलो से भर गये है। विदेशो मे लोग अब जाग रहे है। गुबरैलो की सहायता से शहर साफ करने की योजना बन रही है। इसी पर केन्द्रित यह कविता है। हम सब कितने अंजान है इस सब से, है ना?

पंकज अवधिया दर्द हिन्दुस्तानी

© सर्वाधिकार सुरक्षित

Wednesday, October 24, 2007

टिप्पणी कूट : टिप्पणी करने का अनोखा (?) औजार

मुझे याद आता है पहले तार (टेलीग्राम) करते समय तारघर मे सन्देशो की सूची लगी होती थी। आपको केवल कोड या कूट लिखना होता था और पूरा सन्देश चला जाता था। हिन्दी चिठ्ठाकारो की संख्या जिस तेजी से बढ रही है उससे थोडे समय बाद ज्यादा से ज्यादा टिप्पणी करना दुष्कर हो जायेगा।

पूरा पढने के लिये इस लिंक पर जाये

http://pratikriyaa.blogspot.com/2007/10/blog-post_24.html

Tuesday, October 23, 2007

मेरे घर आना उडन तश्तरी (नयी पंक्तियो के साथ)

मेरे घर आना उडन तश्तरी

(नयी पंक्तियो के साथ)

मैने विचारो का घरौन्दा बनाया है

नारद, ब्लागवाणी और चिठ्ठाजगत मे

पंजीयन कराया है

अब टिप्पणियो से उसे सजाना उडन तश्तरी

मेरे घर आना उडन तश्तरी

जानता हूँ तुम हो आवारा-बंजारा

फिर भी चाहो तो ज्ञान जी की लोह पथ गमन-गामिनी

इंतजार कर रही तुम्हारा

न बनाना कोई बहाना उडन तश्तरी

मेरे घर आना उडन तश्तरी

जानता हूँ तुम नही हो फुरसतिया

पर फिर भी आ जाओ तो हो जाये

दिल की बतिया

अपने साथ वो चश्मा जरूर लाना उडन तश्तरी

मेरे घर आना उडन तश्तरी

तुम सारथी, तुम सृज़न शिल्पी

तुम बोधिसत्व से

प्रेरणादायक भी

तुम बिन चिठ्ठाजगत वीराना उडन तश्तरी

मेरे घर आना उडन तश्तरी

तुम ही रवि, तुम ही नीरज

शांत ऐसे कि कभी न खोते धीरज

हमे भी अपने जैसा बनाना उडन तश्तरी

मेरे घर आना उडन तश्तरी

तुम उन्मुक्त, तुम सागर

तुम मन के आलोक

सीधी तुम्हारी डगर

ऐसे ही हिन्दी की अलख सदा जगाना उडन तश्तरी

मेरे घर आना उडन तश्तरी

तुम टिप्पणीकार टिप्पणी मानो

तुम्हारी रचना

आता है तुम्हे आरम्भ ही से

विवादो से बचना

प्रेम की गंगा ऐसे ही बहाना उडन तश्तरी

मेरे घर आना उडन तश्तरी

गन्दगी के सफाई करते जैसे तुम काकेश

तुमसे ही हमारा विकास

तुम अविनाश, कभी ने निकालते

अपनी भडास

दीर्घायु हो पर इसके लिये वजन घटाना उडन तश्तरी

मेरे घर आना उडन तश्तरी

घुघूती से तुम आजाद

नव-अंकुर से ऊर्जावान

तुमसे रौशन कस्बा हमारा

तुम गुणो की खान

ऐसे ही सदा यश कमाना उडन तश्तरी

मेरे घर आना उडन तश्तरी

जैसे ही आती नयी पोस्ट जान जाता यह

तुम्हारा मन संजय

रघु से समर्पित

बिल्कुल निर्भय-अभय

अपना समझना हमे, मन की बात न छुपाना उडन तश्तरी

मेरे घर आना उडन तश्तरी

पंकज अवधिया दर्द हिन्दुस्तानी

उडन तश्तरी

http://udantashtari.blogspot.com/

नारद

http://narad.akshargram.com/

ब्लागवाणी

http://blogvani.com/

चिठ्ठाजगत

http://chitthajagat.in/

आवारा-बंजारा

sanjeettripathi.blogspot.com

ज्ञान जी

http://hgdp.blogspot.com/

फुरसतिया

www.hindini.com/fursatiya/

नीरज

http://ngoswami.blogspot.com

रवि

http://raviratlami.blogspot.com

उन्मुक्त

unmukt-hindi.blogspot.com

सागर

sagarnahar.blogspot.com

आलोक

puranikalok.blogspot.com

सारथी

sarathi.info

सृज़न शिल्पी

srijanshilpi.blogspot.com

बोधिसत्व

vinay-patrika.blogspot.com

रचना

http://www.blogger.com/profile/15393385409836430390

अविनाश

http://www.blogger.com/profile/05081322291051590431

टिप्पणीकार

tippanikar.blogspot.com

विकास

kabadkhana.blogspot.com

भडास

bhadas.blogspot.com

घुघूती

ghughutibasuti.blogspot.com

आरम्भ

aarambha.blogspot.com

संजय

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अभय

http://www.blogger.com/profile/05954884020242766837

रघु

diaryofanindian.blogspot.com

कस्बा

naisadak.blogspot.com

अंकुर

ankurthoughts.blogspot.com

काकेश

kakesh.wordpress.com

खान

radiovani.blogspot.com

Monday, October 22, 2007

मेरे घर आना उडन तश्तरी

मेरे घर आना उडन तश्तरी

मैने विचारो का घरौन्दा बनाया है

नारद, ब्लागवाणी और चिठ्ठाजगत मे

पंजीयन कराया है

अब टिप्पणियो से उसे सजाना उडन तश्तरी

मेरे घर आना उडन तश्तरी


जानता हूँ तुम हो आवारा-बंजारा

फिर भी चाहो तो ज्ञान जी की लोह पथ गमन-गामिनी

इंतजार कर रही तुम्हारा

न बनाना कोई बहाना उडन तश्तरी

मेरे घर आना उडन तश्तरी


जानता हूँ तुम नही हो फुरसतिया

पर फिर भी आ जाओ तो हो जाये

दिल की बतिया

अपने साथ वो चश्मा जरूर लाना उडन तश्तरी

मेरे घर आना उडन तश्तरी


तुम सारथी, तुम सृज़न शिल्पी

तुम बोधिसत्व से

प्रेरणादायक भी

तुम बिन चिठ्ठाजगत वीराना उडन तश्तरी

मेरे घर आना उडन तश्तरी


तुम ही रवि, तुम ही नीरज

शांत ऐसे कि कभी न खोते धीरज

हमे भी अपने जैसा बनाना उडन तश्तरी

मेरे घर आना उडन तश्तरी


तुम उन्मुक्त, तुम सागर

तुम मन के आलोक

सीधी तुम्हारी डगर

ऐसे ही हिन्दी की अलख सदा जगाना उडन तश्तरी

मेरे घर आना उडन तश्तरी

पंकज अवधिया दर्द हिन्दुस्तानी

उडन तश्तरी

http://udantashtari.blogspot.com/

नारद

http://narad.akshargram.com/

ब्लागवाणी

http://blogvani.com/

चिठ्ठाजगत

http://chitthajagat.in/

आवारा-बंजारा

sanjeettripathi.blogspot.com

ज्ञान जी

http://hgdp.blogspot.com/

फुरसतिया

www.hindini.com/fursatiya/

नीरज

http://ngoswami.blogspot.com

रवि

http://raviratlami.blogspot.com

उन्मुक्त

unmukt-hindi.blogspot.com

सागर

sagarnahar.blogspot.com

आलोक

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सारथी

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सृज़न शिल्पी

srijanshilpi.blogspot.com

बोधिसत्व

vinay-patrika.blogspot.com

सब मिलकर उन्हे कोसे

सब मिलकर उन्हे कोसे

चलो खोजे

उसे जिसने

प्लास्टिक बनाया

उसे भी जिसने इसे

अच्छा बताया

और उसे भी जिसने इसे

घर-घर तक पहुँचाया

सब मिलकर उन्हे कोसे

फिर कडी सजा दिलाने की सोचे

चलो खोजे

ये कैसी उल्टी

बात है

हर बुरी चीज परोसी जाती ऐसे

जैसे सौगात है

शराब, सिगरेट, प्लास्टिक,

गुटखा-----

जाने क्या-क्या

फिर पीढीयो तक वह

हमे बरबाद करती

रोगो और रोगियो से पट

रही ये धरती

चलो दुखी परिवारो के आँसू पोछे

और उनसे निपटे

जो है ओछे

सब मिलकर उन्हे कोसे

फिर कडी सजा दिलाने की सोचे

चलो खोजे

पंकज अवधिया दर्द हिन्दुस्तानी

© सर्वाधिकार सुरक्षित

Sunday, October 21, 2007

मुझे भी तो जीवन से प्यार है

मुझे भी तो जीवन से प्यार है

मेरा जीवन बरबाद करके

आपस मे प्रेम बाँटते हो

हर दशहरे मे मुझे छाँटते कम

ज्यादा काटते हो

ये कैसा व्यवहार है?

मुझे भी तो जीवन से प्यार है।


साल भर मै तुम्हारे लिये

प्राणवायु देती

तुम्हारे द्वारा फैलाये जा रहे

प्रदूषण को सोख लेती

अहसानो को भूलने का सदा से

तुझमे विकार है

ये कैसा व्यवहार है?

मुझे भी तो जीवन से प्यार है।


नष्ट करना ही है तो

नुकसान करने वालो को उखाडो

बाहर से आए खतरनाक खरपतवारो को

इस नये ढंग से मारो

क्यो नही आता मन मे

ऐसा विचार है

ये कैसा व्यवहार है?

मुझे भी तो जीवन से प्यार है।

पंकज अवधिया दर्द हिन्दुस्तानी

देश के बहुत से भागो मे यह परम्परा है कि रावण वध के बाद लूटे गये सोने के प्रतीक के रूप मे पेड की पत्तियाँ आपस मे बाँटी जाती है। छत्तीसगढ मे सोन-पत्ता आपस मे दिया जाता है। यह कचनार की पत्तियाँ है। पहले जब हम लोगो की आबादी कम थी तब इसकी कटाई-छटाई अच्छी मानी जाती थी। दशहरे के नाम से लोग इस जंगली वृक्ष की काट-छाँट कर लेते थे। पर अब जब हम बहुत बढ गये है बढती माँग के कारण बडी बेहरमी से इन्हे काटा-छाँटा जाता है। बहुत से वृक्ष मर जाते है। हमारा पर्व उनके लिये जानलेवा साबित हो रहा है। इसलिये यह कविता लिखी गई है। यह भी सुझाव दिया गया है कि यदि नुकसान पहुँचाने वाले विदेशी खरपतवारो का इस तरह हम उपयोग करे तो हमारा पर्व भी मन जायेगा और नुकसानदायक पौधे भी मर जायेंगे।

© सर्वाधिकार सुरक्षित

Tuesday, October 16, 2007

विशु

उपन्यास : प्रथम किश्त

विशु

- पंकज अवधिया

उसने ज्योतिषियो से मदद मांगी तो रत्न सुझा दिये गये। हजारो बहाये गये पर नतीजा सिफर ही रहा। फिर किसी ने सिद्ध बाबा से मिलने की बात कही। विशु ने अपनी माँ को जब उनसे मिलवाया तो बिना कुछ जाने वे बोल पडे यह रोग तो किसी दुखी मन से निकली आह के कारण ही हो सकता है। क्या तूने किसी का दिल दुखाया है? अनोखी ने कहा नही तो। तो बाबा बस मुस्कुरा दिये।

इसी उपन्यास से

पूरा यहाँ पर पढे

http://pratikriyaa.blogspot.com/2007/10/blog-post.html

Wednesday, October 3, 2007

बहुत हो गया अब न चुप रहूँगी

बहुत हो गया अब न चुप रहूँगी

जाना न समझा मुझे

बस शोषक कह दिया

सदा बुरा कहा और लिखा

जैसे मैने कभी भला न किया


दूसरो के दिल को दुखाना

तुम्हारे लिये है खेल

बहुत हो गया अब न चुप रहूँगी

मै अमरबेल


आखिर मै भी हूँ

प्रकृति की बेटी

लौटाती वो सब कुछ

जो उससे लेती


फिर अनचाहा कहकर बागीचे से बाहर

क्यो देते हो ढकेल

बहुत हो गया अब न चुप रहूँगी

मै अमरबेल


भले ही मै तुम्हारी फसलो को

खाती हूँ

पर कई खरपतवारो को भी तो

ठिकाने लगाती हूँ


मै हूँ अनोखी, किसी से नही है

मेल

बहुत हो गया अब न चुप रहूँगी

मै अमरबेल


शोषण के खिलाफ आवाज

उठाते हो

तो फिर क्यो नही मेरी मदद को सामने

आते हो


आओ और कसो, मुझे बुरा कहने वाले

साहित्यकारो की नकेल

बहुत हो गया अब न चुप रहूँगी

मै अमरबेल


पंकज अवधिया दर्द हिन्दुस्तानी

(c) सर्वाधिकार सुरक्षित

अमरबेल नामक परजीवी वनस्पति को हम सब जानते है। बचपन से ही उसके नकारात्मक पहलुओ के बारे मे बताकर हमारे मन मे तरह-तरह की बाते भर दी जाती है। पर अमरबेल ने मानव जाति की भलाई मे अमूल्य योगदान दिया है। दुनिया भर मे बतौर दवा इसका प्रयोग होता है। कई जीवन रक्षक दवाए इससे बनायी जाती है। हमारे देश के पारम्परिक चिकित्सक सदियो से यह जानते है कि अमरबेल अन्य वनस्पतियो से पोषक तत्व के अलावा औषधीय तत्व भी लेती है। मान लीजिये यदि अमरबेल बेर के पेड से एकत्र की जाती है तो उसमे बेर से अधिक औषधीय गुण होते है। आधुनिक विज्ञान अब इसे समझ पा रहा है।

Tuesday, October 2, 2007

अरे कोई तो मुझे बचा लो

अरे कोई तो मुझे बचा लो

सदियो से तुम्हे ह्रदय रोगो से

बचाया

जब चिंतित दिखे

चैन की नीन्द सुलाया


फिर भी कर रहे हो

काम यह गन्दा

अरे कोई तो मुझे बचा लो

मै हूँ सर्पगन्धा


असंख्य थे हम कभी

वनो मे

पर उखाडकर बेचा हमे

मनो मे


दूसरो का जीवन जो छीन ले

भला यह कैसा है धन्धा

अरे कोई तो मुझे बचा लो

मै हूँ सर्पगन्धा


सरकार ने प्रतिबन्ध लगा

कुछ राहत पहुँचाई

पर फिर भी मै बिकती हूँ

यह है रिश्वतखोरो की बेहयाई


हम मिट गये धरती से तो सोच तेरा क्या होगा

मत बन लालच मे अन्धा

अरे कोई तो मुझे बचा लो

मै हूँ सर्पगन्धा

पंकज अवधिया दर्द हिन्दुस्तानी

(c) सर्वाधिकार सुरक्षित

सर्पगन्धा जग-प्रसिध्द औषधीय वनस्पति है जो आधुनिक और प्राचीन सभी चिकित्सा पध्दतियो मे प्रयोग होती है। पहले यह भारतीय वनो मे प्रचुरता से उगती थी पर अविवेकपूर्ण दोहन से अब इसका अस्तित्व खतरे मे है। प्रतिबन्ध के बावजूद यह बाजार मे खुलेआम बिकती है। विशेषज्ञ तो इस तथ्य को अच्छे से जानते है पर आम लोगो तक इस बात को पहुँचाने के लिये मैने कविता का माध्यम चुना है।