Wednesday, April 23, 2008

हाँ, मुझे लिखना नही आता : अलविदा हिन्दी ब्लाग जगत

सभी वरिष्ठो और कनिष्ठो के आशीष और प्यार भरे सन्देश के बाद मैने ब्लाग पर लिखते रहने का निर्णय लिया है। मै लिखता रहूंगा, जिसकी जैसी समझ है वह समझे। इस अनिश्चय की घडी मे आप सब शुभचिंतको के सहयोग के लिये मै आभारी हूँ। शुभचिंतको ने जो संघर्ष का हौसला दिया है उसे कायम रखूंगा।


आज शाम जंगल से वापस लौटा तो देखा सब जगह औधिया जी ही औधिया जी है। मै उन सभी का आभारी हूँ जिन्होने मेरे लेखो को कम से कम भाषण कहा। मै तो इस लायक भी नही हूँ। मै तो लिखने की कोशिश कर रहा हूँ। पता नही कब सफलता मिलेगी?

मै जब हिन्दी ब्लाग की दुनिया मे आया तो मुझे बताया गया कि कोई योग्यता की जरुरत नही है। सभी लोग यहाँ लिख सकते है। इसीलिये मैने लिखने की जुर्रत की। पर अब लगता है बडी गल्ती हो गयी। देश के बडे-बडे ब्लागर जिनके लेखन का मै प्रशंसक रहा हूँ सारे देश की समस्या को छोडकर इसमे अपनी ऊर्जा व्यर्थ कर रहे है कि मुझे लिखना आता है कि नही। पहले बताया होता तो मै स्वीकार कर लेता।

अब मेरे रुकने से आपको समस्या हो और आपकी इजाजत न हो तो ब्लाग की दुनिया से भी चला जाता हूँ। आखिर कितना समय लगता है ब्लाग डिलिट करने मे। मेरी ही गल्ती है जो विद्वत जनो के सामने मैने कलम उठाने की जुर्रत की।

मै गूगल का आभारी हूँ जिसने मुझे मौका दिया कि मै आप लोगो से मिल सका कुछ समय के लिये ही। अब मै अपने सभी ब्लाग मे नया लिखना बन्द कर रहा हूँ। और कोई आदेश हो तो बताये वह भी मै करने को तैयार हूँ पर आप जरा देश की समस्याओ पर ध्यान दे मुझ जैसे नाचीज को लेकर क्यो परेशान हो रहे है?

यह भी बताये कि क्या मै आगे लिखने की कोशिश कर सकता हूँ या नही? ब्लाग पर नही मेरे आका कागज पर?

उन सभी को धन्यवाद जिनके सानिध्य मे मैने जीवन का यह महत्वपूर्ण समय बिताया

ज्ञान जी, संजीव तिवारी जी, संजीत त्रिपाठी जी, रचना जी, घुघुती बासूती जी, अनूप शुक्ल जी, जय प्रकाश मानस जी, संजय तिवारी जी, मीनाक्षी जी, युनुस जी, सागर नाहर जी, अनिता कुमार जी, मसिजीवी जी, दिनेश जी, पीडी जी, महेन्द्र जी, अनिता कुमार जी, अनिल रघुराज जी, रवि रतलामी जी, समीर जी, अरविन्द जी, सारथी वाले गुरुजी, संजय जी, ममता जी, पीयूष जी, अन्नपूर्णा जी, जितेन्द्र जी, नीरज जी, अतुल जी, शिव जी, अजित जी, अभय जी और सभी जिनके नाम मै अभी याद नही कर पा रहा हूँ।

25 comments:

दिनेशराय द्विवेदी said...

अरे! धन्यवाद सूची में इतने नाम होने के बाद आप को हिन्दी जगत छोड़ने की जरुरत कहाँ है? विरोधी तो सभी स्थानों पर मिलेंगे। एप्रिसिएशन भी तो कम नहीं है। और फिर आप जिस भावना से आप का काम जारी रखे हैं उस की सब से अधिक आवश्यकता हिन्दी जगत को ही है।

Sanjay Tiwari said...

आप क्यों चले जाएंगे. ऐसी नौबत आयेगी कि मेरे कारण कोई ब्लाग से विदा हो तो उसके पहले हम ही विदा हो जाएंगे.
अखबार के संपादक को अगर पाठक चिट्ठी लिखता है या उसके किसी खबर, सूचना पर सवाल उठाता है तो अखबार का संपादक उस समस्या का निदान करता है अखबार ही बंद नहीं कर देता.

मैं जानता हूं जमीन से जुड़ा आदमी यह शायद ही लिखे कि विकास में वृक्षों को भी मौका मिलना चाहिए. मुझे दुख हुआ कि आप जैसा जमीनी आदमी ऐसा कैसे लिख सकता है. यही सवाल हमने ब्लाग पर भी किया है.

दूसरी बात कि आपके लेखों में मुझे तथ्यों का अभाव हमेशा खटकता है. यह इसलिए भी हो सकता है कि एक पाठक के तौर पर मैं तार्किक मजबूती के लिए तथ्यों की अपेक्षा करता हूं.

ये दो सवाल अगर आपको अपमानजनक लगते हैं और आपको ठेस पहुंची है तो मैं आपसे पहले ब्लाग जगत को विदा बोलता हूं.

अनिल रघुराज said...

पंकज जी, आलोचना को सकारात्मक तरीके से लीजिए, रणछोड़ मत बनिए। अपने ज्ञान की संपदा लिए भागकर कहां जाएंगे। जहां भी जाएंगे लोग, पिछुआते रहेंगे।
आप भी कैसी बच्चों जैसी बातें करते हैं कि ब्लॉग बंद कर देता हूं!!!

Satyendra Prasad Srivastava said...

ब्लॉग को आप जैसे लेखकों की ही जरूरत है। आप बंद कमरे में बैठ केवल कोरी कल्पनाएं कागज पर नहीं उतारते बल्कि हकीकत का सामना कर उससे रूबरू कराते हैं। आपके लेखक शिक्षाप्रद और अच्छे लगते हैं। मत जाइए। इसीमें हम सब की भलाई है

Neeraj Rohilla said...

पंकजजी,
ऐसा निर्णय कभी न लें । आपसे अनुरोध है कि आप लिखना जारी रखें । आपके लेखों से हमारी पीढी को मार्गदर्शन मिलता है । आशा है आप पुनराविचार करके अपने ज्ञान को लेखों के माध्यम से हिन्दी ब्लाग जगत में बाँटते रहेंगे ।

Ashok Pande said...

आप को शायद पता ही नहीं है कि आपको कौन कौन किस किस तरह पढ़ा करता है. यूं जाने की ज़िद करना ठीक नहीं. गाजर घास पर आपके सूचनापरक लेखों ने हमारे इलाके में इस विषय पर कार्यरत कई लोगों को तमाम ज़रूरी बातें सिखाई हैं (यह केवल एक उदाहरण मात्र है). आप लिखें और सतत लिखें. टिप्पणियों और कम्प्यूटर में नज़र आ रही डिटेल्स को नज़रअन्दाज़ करें, आप एक ज़रूरी काम कर रहे हैं.

शुभकामनाएं!

राज भाटिय़ा said...

अरे भाई आलोचना तो एक आईना हे जिसे देख कर हम अपनी गल्तिया सुधार सकते हे, फ़िर आप तो बहुत महान काम कर रहे हे,ओर मे तो आप का पक्का ग्राहक हू,तरीफ़ से खुशी मिलती हे तो आलोचना से ताकत मिलती हे ,हम सभी अभी भी नये ही हे, चलो अब सब की बात मान जायो मुझे लगता हे सभी आप से उम्र मे भी बडे हे तो उमर की इजाज्त तो जरुर रखना.

Anonymous said...

मैं पिछले कुछ महीनों से आपका ब्लॉग पढ़ रहा हूँ, कमेन्ट कभी नही किया वो अलग बात है. मेरे जैसे कई होंगे जो कमेन्ट नहीं करते, अच्छा या बुरा. सिर्फ़ जानकारी लेते हैं. ज़रा पुनर्विचार करें.

बलबिन्दर said...

' कठिन राहों पर चलिये, विरोधी कम ही मिलेंगे' मेरा प्रिय वाक्य रहा है।
सीधे सीधे धमकी दे रहा हूँ - लिखते रहिये, हमें आप की जरूरत है, कोई जरूरत नहीं कहीं जाने की।
टिप्पणी नहीं करते, तो क्या।
…और हाँ, वो साधू-बिच्छू की नदी वाली कहानी भी तो पढी ही होगी, बचपन में?

Gyan Dutt Pandey said...

कुछ को केवल लिखना आता है। कुछ को वह आता है जो लिखा जाना चाहिये। पहले वाला दूसरे को बन्द नहीं कर सकता।

अनूप शुक्ल said...

आपका प्रस्ताव अस्वीकार्य है। खारिज किया जाता है। संजीव तिवारी का भी। लिखते रहें। अपनी बात कहते रहें।

काकेश said...

पंकज जी भले ही आप केवल उन लोगों को धन्यवाद करें जो आपके लेखों पर टिप्पणी करते हैं लेकिन बहुत से ऐसे लोग भी हैं जो आप को पढ़ते हैं लेकिन टिपियाते नहीं. अभी पिछ्ले दिनों ही आपके गाजर घास के साथ दो दशक श्रंखला पढ़ रहा था और उससे काफी नयी बातें भी सीख रहा था,कई लोगों को आपके लेख का यू आर एल भी भेजा. तो आप महत्वपूर्ण काम कर रहे हैं.

जहाँ तक संजय जी की बात है तो उन्होने एक पाठक की हैसियत से अपने असहमति जताई. हो सकता है उनको ऐसा लगा हो लेकिन इसका मतलब यह नहीं आप मैदान छोड़ कर भाग जायें.

आप और संजय जी दोनों की हमें जरूरत है. पेस और भूपति की तरह आप लोग अलग अलग ना हों और ब्लॉग डिलीट करने की बातें ना करें. बल्कि साथ रहकर भारत को डेविस कप दिलवायें.

बांकी आप खुद समझदार हैं.

पारुल "पुखराज" said...

पंकज जी,आपकी पोस्ट्स बड़े चाव से पढ़ी जाती हैं । कहने की ज़रूरत नही कि आप कितनी महत्वपूर्ण जानकारी हम तक पहुँ चा रहे हैं--आपको पढ़कर ही अपने घर मे मै एक आयुर्वेदिक वाटिका बनाने की सोच रही हूँ --निवेदन है--- लिखते रहिये ।

sanjay patel said...

पंकज भाई...
आप कुछ तो कर रहे हैं
इसलिये लोग कह रहे हैं


आप कहना जारी रखें
शिकायत करने वाले अपने ही तो होते हैं
कितना बड़ा परिवार है आपके शब्दों का
और हाँ ....हमेशा मान कर चलिये कि एक
बड़ा तबक़ा ऐसा भी होता है जो आपके लेखन का मुरीद होता है लेकिन व्यक्त नहीं कर पाता ....उन मौनीबाबाओं का तो ख़याल कीजिये.

sanjay patel said...

कृपया मेरी पूर्व में की गई टिप्पणी में भी जोड़ दें...
यूँ ही पहलू में बैठे रहो
आज जाने की ज़िद न करो

Yunus Khan said...

पंकज भाई । रिलैक्‍स रहिए ।
और याद रखिए कि आप अपने लिए नहीं हमारे लिए लिख रहे हैं । हम सबके लिए ।
आपको कोई हक़ नहीं है हमसे इस खुराक को छीनने का ।
समझ में आया भाई साहब ।

Batangad said...

पंकजजी
मुझे नहीं पता कि आप जैसा आदमी इस तरह की बात कैसे कर सकता है। अगर संजय तिवारी तथ्यों की बात कर रहे हैं तो, उन्हें बताइए। और, मैंने खुद आपकी ही एक पोस्ट पढ़ने के बाद कुछ दिनों तक रात में भिगोकर सुबह हर्रै खाई, कुछ फायदा लगा-कुछ नहीं। लेकिन, आप तो ब्लॉग डिलीट कर खुद से ही भरोसा खो रहे हैं।

Rachna Singh said...

why are u so worried about what others think about you ? Blog is a dairy , where you can write what ever you want and which ever way you want . Why bother so much about other people opinion . When you bother so much about people opinion you are not writing for the sake of writing but you are writing to show to others that you are writing .
Hindi blogs are on aggregators so what ever you write is circulated among all the other members who are also on aggregators . Every one of us wants to prove that "we are the most intelligent" where as each one of us is "equally a duffer " .
If you care about what others think about you then be "open and tolerant " to critsim and leg pulling that happens here .
If you dont bother other opinion that you write because you have a lot in you to express then the space "blog" given to oyu by google is a boon and u should use it to spread awareness as you constantly do and also as sanjay does on visfot . sanjy is looking for more facts good find out if you can , forget if you cant . we all have our limitations .
simulteously ask aggrgators to improve on technology so that they post where heading changes are incoprated , shows heading change in aggregator also and when the post is deleted the post should be delted from aggregators also .
if you feel you are not happy with so many people reading your blog and critising because you feel they dont know any thing then please remove your blog from aggregators , then few blogger will read you but they will be those who read you for your content . who may not comment but will still read .
and pankaj its always good to give credit , i am anot sure if changed the heading after sanjay pointed it out but if you did it then you should have added one line into the post giving credit to sanjay .
since you have given my name also in bloggers you have shared blogging with i am voicing my opinion . if you feel its out of context feel free to delete the comment

Pankaj Oudhia said...

आप सभी की टिप्पणियो के लिये धन्यवाद और आभार। तिवारी जी और रचना जी आपको यह सूचित करना चाहूंगा कि ज्ञान जी का ब्लाग हमारा सन्युक्त ब्लाग नही है। मै अपना शीर्षकविहीन लेख ज्ञान जी को जीमेल से भेज देता हूँ। फिर वो उसमे शीर्षक सहित बहुत सी रोचक सामग्री डाल देते है। आप मेरे मूल आलेख को देखेंगे तो वह इतना रोचक नही लगेगा जितना कि ज्ञान जी की मेहनत के बाद दिखता है। तिवारी जी, आपने बिना मुझसे सम्पर्क किये सीधे ही जो आरोप मढकर पोस्टे भेजनी आरम्भ कर दी उससे मुझे बडा दुख हुआ। इसलिये मै हिन्दी ब्लाग की दुनिया से विदा ले रहा हूँ। मै आपका प्रशंसक रहा हूँ और रहूंगा। पर जिस तरह से आपने विरोध किया उससे लगता है कि इसके पीछे कुछ और बात है। मै यहाँ रुका तो देर-सबेर आप फिर यही करेंगे।


मै रणछोड नही बन रहा हूँ अनिल जी। कल तिवारी जी की पोस्ट आने से अब तक मैने मधुमेह की वैज्ञानिक रपट मे 600 से अधिक पन्ने जोडे है। मै काम करता रहूंगा। हाँ, जो ब्लागिंग मेरे प्रिय लेखको को मेरा दुश्मन बना दे वह नही करूंगा। हिन्दी ब्लाग परिवार छोटा सा है। आशा है आगे से तिवारी जी नये सदस्यो को इसमे जोडेंगे। मेरे बाद अब वे किसी को इतना नही सतायेंगे कि ब्लागिंग बन्द करनी पडे। वैसे यह अच्छा सबक रहा जीवन का।

डा.अरविन्द चतुर्वेदी Dr.Arvind Chaturvedi said...

अरे भैय्या ऐसन का हुइ गवा कि आप जैसन को 'भागने' की ज़रूरत आ गयी.
आप तो खुदे लिखे हो कि हिन्दी ब्लोग जगत एक ठो छोटा सा परिवार है. अब परिवार मैंया कौनो कछू कह दिहिस , तो ओका परिवार जैसन ही लिया जाय. जियादा कौनो टेंशन वेंशन ले का ज़रूरत नाही है भैय्या जी.


ई तो छोटी छोटी बातें हैं, बस आपे-आप हुइ जात हैं. गुस्सा जिन करा. जौनो हो वोहू थूक देउ .
बस अप्न काम में मन लगा रही तो ई सब फिज़ूल की बातें दिमाग मां न अईयें.


सही गलत ,सबै चलत है ब्लौग मां..
अरे कौनो पी एच डी करे का है का ?
हमरी मानो तो चलै देउ भैय्या ....

Anonymous said...

aur oankaj jab aap naey post bina heading kae dee haen aur heading kisii aur naey daali haen to aap iskae liyae rusht kyu haen

आनंद said...

"मैने मधुमेह की वैज्ञानिक रपट मे 600 से अधिक पन्ने जोडे है। मै काम करता रहूंगा।"

छोड़ने से पहले यह तो इंतज़ाम कर जाइए कि आपके प्रशंसकों को आपके लेख सुलभ हो सकें, जैसे कोई लिंक वगैरा देते जाइए। और साथ ही कोई ऐसा इंतजाम भी कर जाइए कि रोजाना बन रहे नए पाठकों को भी आपके लेखों का पता चलता जाए, जैसे एग्रीगेटरों में आपका नाम समय समय पर आता जाए।

अवधिया जी। सन्‍यास लेने वाली मानसिकता से बाहर निकलिए। आपको बच्‍चों जैसे रूठना शोभा नहीं देता। अपने लिखे पर इतना मोह करना ठीक नहीं है। आलोचना किसकी नहीं होती?

और हाँ। अभी आपने अपने चाहने वालों की सूची में मेरा नाम छोड़ दिया है। यदि कहें तो इस पर बुरा मानकर मैं भी सन्‍यास की घोषणा कर दूँ।

Shiv said...

पंकज जी,

इस तरह की बातों पर ध्यान न दें. मुझे मालूम है, कि ये कहना बहुत सरल है, लेकिन फिर भी मैं कह रहा हूँ. आपके द्वारा लिखा गया इतने लोग पढ़ते हैं. इतने लोग लाभान्वित होते हैं कि कोई एक पोस्ट ऐसे लोगों की सोच पर हावी नहीं हो सकती.

हम सभी चाहते हैं और आपसे निवेदन भी करते हैं कि आप लिखते रहे. हमेशा लिखते रहें.

Satyendra Tripathi said...

आपने यह नही सुना कि


हाथी चले बजार

कुत्ते भौके हजार


अरे कुत्तो को भौकने दीजिये। आप काहे दुखी होते हो दादा।

Anonymous said...

पंकज जी, आलोचना को सकारात्मक तरीके से लीजिए यदि कोई कमी है तो दूर करिये यदि नहीं है तो आगे चलिये।
बचपन में रूठना, मनाना चला करता है, अब नहीं।
मेरे विचार से आप और संजय जी दोनो हिन्दी चिट्ठाजगत को छोड़ने की बात कर रहें हैं यह अनुचित है।