पिछले दिनो कुछ प्रबुद्ध पाठको ने इकोपोर्ट मे मेरे योगदान की जानकारी चाही थी। वैसे तो मै अपने लेखो मे कडियाँ देता रहता हूँ पर एक बार फिर से यहाँ कुछ उपयोगी कडियाँ प्रस्तुत है। पिछले माह एक कम्प्यूटर विशेषज्ञ को फीस देकर प्रिंट निकलवाने के लिये कुल पन्नो की संख्या गिनने का प्रयास किया था पर तीन लाख पन्नो के बाद इसे रोक दिया गया। यदि एक पन्ने के लिये एक रुपया भी पकडे तो भी तीन लाख से अधिक का खर्च बैठेगा। शोध आलेखो और रपट की सूची मे मधुमेह की वैज्ञानिक रपट भी है जिसमे अभी तक 75,000 पन्ने जोडे जा चुके है। यह दो वर्षो मे पूर्ण होगी और तब इसमे दो लाख से अधिक पन्ने होंगे। हाल ही मे ह्र्दय रोगो पर भी एक रपट आरम्भ की है। इसमे अभी तक दस हजार पन्ने लिखे गये है। प्रतिदिन 600-800 पन्ने का कठिन लक्षय रखा है। इकोपोर्ट विकी की तरह है। इसमे पैसा नही मिलता। शोध से लेकर दस्तावेजीकरण तक किसी से भी एक पैसा लिये बगैर ये योगदान दिया गया है। विकी के विपरीत इसमे विशेषज्ञ ही अपना योगदान दे सकते है। इकोपोर्ट ज्ञान के व्यवसायिक उपयोग की अनुमति नही देता। इकोपोर्ट मे रपट को कूट भाषा मे भी लिखा जा सकता है। इकोपोर्ट मे मैने 80,000 से अधिक चित्रो का योगदान किया है जिसमे से अब तक 32,000 से अधिक चित्र शामिल किये जा चुके है।
इसके अलावा 13,000 से अधिक आलेख बाटेनिकल डाँट काम पर भी है।
सैकडो शोध पत्र है जो दुनिया भर की शोध पत्रिकाओ मे प्रकाशित हुये है। कुछ की सूची यहाँ है।
हिन्दी मे किसानो के लिये तीन हजार लेख अब तक लिखे है जो देश भर की 18 से अधिक कृषि पत्रिकाओ मे प्रकाशित होते रहते है। इन्हे यूनीकोड मे फिर से टाइप कर नेट पर लाने के प्रयास कर रहा हूँ।
नवीनतम जानकारी आप मेरे होम पेज से प्राप्त कर सकते है।
3 comments:
पंकज जी,
सर, स्तब्ध हूँ. इतनी मेहनत किसी साधारण इंसान के बस की बात नहीं है. इन लेखों की शक्ल में आपके योगदान के लिए आपको मेरा प्रणाम.
गजब का शोध है आपका .आपको खदेड़ खदेड़ के पढ़ने का नशा हमारे जैसे कईयों को है .साफ को सफाई नही देनी चाहिए . आप जमके लिखे हम केवल पढ़ते ही नही लाभान्वित भी हो रहे है .हाँ टिप टाप नही करते है ये गलती अबतक होती रही .
लेकिन यह नहीं बताया कि कौन सी चक्की का खाते हैं कि इत्ता कर लेते हैं!
मेहनत करने के तरीके पर पोस्ट चाहिये।
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