मेरा किसान अब रतनजोत बोता है॥
मेरा किसान भोला है जो बातो मे आ जाता है
इतने छल के बाद भी धोखा ही पाता है
हर बार उसी के साथ ऐसा क्यो होता है
मेरा किसान फसल छोड रोता है।
मेरा किसान अब रतनजोत बोता है॥
कौन जाने, कौन खरीदेगा इसे,
नही बिका तो शिकायत कहेगा किसे,
इसे खाकर बीमार होते बच्चो को देखकर
मन मसोसता है।
मेरा किसान फसल छोड रोता है।
मेरा किसान अब रतनजोत बोता है॥
‘विनाश के बीजो’ का सियासी खेल,
वो क्यो रहा झेल,
करे कोई, भरे कोई,
ऐसा कही होता है।
मेरा किसान फसल छोड रोता है।
मेरा किसान अब रतनजोत बोता है॥
घाटे की फसल, घाटॆ का सौदा
तिस पर मौत देने वाला पौधा
उसने तो सुख के लिये सपने देखते
अपना खेत जोता है।
मेरा किसान फसल छोड रोता है।
मेरा किसान अब रतनजोत बोता है॥
‘वे’ उपजाउ जमीन को बंजर बता,
बना रहे सचमुच बंजर,
कैसा ये हित है
कैसा है ये मंजर,
अपनो से धोखा खा, मेरा किसान अब आपा खोता है।
मेरा किसान फसल छोड रोता है।
मेरा किसान अब रतनजोत बोता है॥
जिसकी खेती नही वही इसकी करता है बात,
दो दिन की चान्दनी, फिर अन्धेरी रात,
मरिग मरिचिका से मेरा किसान सपने संजोता है,
मेरा किसान फसल छोड रोता है।
मेरा किसान अब रतनजोत बोता है॥
पंकज अवधिया ‘दर्द हिन्दुस्तानी’
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1 comment:
आज का शास्वत सत्य आपने बयाँ किया है -
"...मेरा किसान पारम्परिक फसल छोड रोता है।
मेरा किसान अब रतनजोत बोता है॥..."
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